निर्मल वर्मा की 96वीं जयंती पर इंडिया हैबिटेट सेंटर में ‘कृती निर्मल’ कार्यक्रम में उनकी असंकलित कहानियों के संग्रह ‘थिगलियाँ’ का लोकार्पण हुआ। सुधीर चन्द्र, गगन गिल, संजीव कुमार, वन्दना राग समेत कई साहित्यप्रेमी इस कार्यक्रम में शामिल रहे। इस संग्रह का सम्पादन गगन गिल ने किया।
सुधीर चन्द्र ने कहा, “निर्मल वर्मा के लेखन का मैं भक्त हूँ। उनके साथ बिताए दिनों की यादें बहुत अनमोल हैं।”
अन्य लोगों ने भी ‘थिगलियाँ’ से कुछ कहानियों के अंशपाठ किए और निर्मल वर्मा के साथ जुड़े कुछ संस्मरण साझा किए। गगन गिल ने कहा, “निर्मल अपनी कहानियों में बच्चों की जो दुनिया रचते थे कि बच्चे बड़े लोगों को किस तरह से देखते हैं और उनके बारे में कैसे और क्या सोचते हैं, उसने मुझे बहुत परेशान भी किया और आकर्षित भी किया।”
संजीव कुमार ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि निर्मल को पढ़ने वाला कोई व्यक्ति कभी असहिष्णु भी हो सकता है। उन्हें पसन्द करने वाले व्यक्ति के अन्दर दुनियाभर के अलग-अलग भावों और विचारों को मानने की स्वीकार्यता होती है। अगर आपके भीतर जरा भी ऐसे भाव है तो शायद निर्मल आपको पसन्द नहीं आएंगे।”
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— दिल, दरख़्त और दिल्ली। (@ravityadav_) April 3, 2024
इस पर गगन गिल ने कहा, “कोई भी साहित्य आपको कभी असहिष्णु नहीं बनाता। वह होता ही इसलिए है कि वह आपको संवेदनशील और सहिष्णु बना सके। मुझे लगता है कि किसी की किताब पढ़कर कोई नहीं बदलता। किसी भी मनुष्य का बेहतर मनुष्य के रूप में बदलना उसका अपना ही पुरुषार्थ होता है। हाँ, साहित्य आपको उसके लिए प्रेरित कर सकता है। जो व्यक्ति निर्मल को पढ़ता है, वह या तो खुले दिमाग का होगा या उनको पढ़ते-पढ़ते हो जाएगा।”
बातचीत के दौरान गगन गिल ने निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और आदतों से जुड़े अनेक अंतरंग प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा, “निर्मल में खुद को खारिज होते सुनने की आदत थी, लेकिन वे कभी झूठ बर्दाश्त नहीं करते थे। जब मैं उनकी आलोचना करती थी तो वे मुझे बड़े ध्यान से सुनते थे। ऐसा खरा आदमी मैंने दूसरा नहीं देखा। उन्होंने न कभी झूठ लिखा न कभी झूठ जिया।”
गगन गिल ने कहा, “निर्मल को कई बार लोग उनके किसी एक बयान के आधार पर इतनी आसानी से किसी एक धड़े से जुड़ा हुआ करार देते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी राजनीतिक सत्ता के साथ उनका रिश्ता कभी सहज नहीं रहा। निर्मल के अन्दर कई सारे निर्मल रहते थे। उनकी जटिलता को हम उनके समय में रखकर ही देख सकते हैं। अच्छे लेखक की परतें उसके गुज़र जाने के कई वर्ष बीत जाने के बाद खुलती है। चले जाने के बाद कम वर्षों के भीतर लोग आलोचना अधिक करते है, तरह-तरह के टैग में उन्हें बांधे जाने का प्रयास किया जाता है। गंभीर लेखक की सही समझ और परख समय की मांग करती है। मुझे तो वो लेखक ही संदिग्ध लगता है जिसको उसके जीवन काल में ही समझ लिया गया हो।”
निर्मल वर्मा की असंकलित कहानियों के संग्रह ‘थिगलियाँ’ के लोकार्पण समारोह में अशोक महेश्वरी ने कहा, “हमारे लिए यह बहुत खुशी का समय है। हम निर्मल जी और गगन जी की सभी पुस्तकों का प्रकाशन कर रहे हैं। निर्मल और राजकमल का अलगाव साहित्यिक समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया। किताबों के इस पुनर्प्रकाशन का सभी ने मुक्तकण्ठ से स्वागत किया है। पुस्तकों की प्रस्तुति को भी सभी ने सराहा है।”
‘थिगलियाँ’ निर्मल वर्मा की असंकलित और अप्रकाशित कहानियों का संग्रह है, जो पहली बार एक साथ प्रकाशित होकर पुस्तकाकार उपलब्ध हुआ है। यह संग्रह निर्मल वर्मा के प्रशंसकों के लिए एक अनमोल उपहार है।
इस संग्रह में शामिल रचनाएँ :
- 1954 में प्रकाशित कहानियाँ ‘रिश्ते’ और ‘बैगाटेल’
- 2005 में प्रकाशित अन्तिम कहानी ‘अब कुछ नहीं’
- दो अपूर्ण उपन्यास