क्या आप भी सोचते हैं कि कुछ लोग अति-बुद्धिमान क्यों होते हैं? असाधारण प्रतिभा का रहस्य संतुलित ऊर्जा और अनावश्यक जानकारी से दूरी में छिपा है। हमारे मस्तिष्क में एक अद्भुत ‘रहस्यमय स्रोत’ है, लेकिन लगातार फ़ोन, टीवी और व्यर्थ सोशल मीडिया कंटेंट इसे क्षीण कर देता है। ‘ख़ुश मन के संस्कार’ के लेखक दीपांशु गिरी बता रहे हैं कि कैसे एक सरल अनुष्ठान और गहन चिंतन के अभ्यास से आप अपने मन की गहराई में छिपे ‘ख़ज़ाने’ तक पहुँच सकते हैं, अपनी सोचने की शक्ति को मज़बूत कर सकते हैं और जीवन की दिशा स्पष्ट कर सकते हैं-
क्यों कुछ लोग अति-बुद्धिमान होते हैं? और क्यों केवल कुछ ही लोग असाधारण प्रतिभा के धनी होते हैं? मैंने कई महान व्यक्तियों की जन्म कुण्डलियों का अध्ययन किया है। अलग-अलग संयोगों को देखा है और मुझे एक बात समझ में आई कि इन सभी की कुण्डलियों में एक बात समान थी। इनकी ऊर्जा संतुलित नहीं थी। अब आइए विचारों को नियंत्रित करने में मदद करने वाले एक सरल अनुष्ठान या उपाय के बारे में जानें। अगर इसका अभ्यास नियमित रूप से किया जाए, तो यह आपको ब्रह्मांड की गहराई तक ले जा सकता है।

आपके मस्तिष्क की गहराई में एक पंडोरा बॉक्स (रहस्यमय स्रोत) छिपा है, जो आपको ऐसे-ऐसे अद्भुत विचार दे सकता है जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी, लेकिन इस बॉक्स तक पहुँचने और ब्रह्मांड से जुड़ने के लिए सबसे पहले आपको बार-बार अनावश्यक जानकारी देकर आपकी सोचने की शक्ति को धीरे-धीरे नष्ट करने वाले उन स्रोतों से हटना होगा। उदाहरण के लिए, आपने गौर किया होगा कि ट्रेन या बस की यात्रा के दौरान कई लोगों को नींद आने लगती है या वे ऊँघते हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि जब हम खिड़की से बाहर देखते हैं, तो एक साथ बहुत सारे दृश्य हमारे मस्तिष्क में जाने लगते हैं। यह जानकारी धीरे-धीरे मस्तिष्क को थका देती है और परिणामस्वरूप हम गहरी नींद में चले जाते हैं।
जो व्यक्ति गहराई से सोचता है, वह गहरी नींद लेता है, क्योंकि उसका मस्तिष्क लगातार ढेर सारी जानकारी को प्रोसेस करते हुए थक जाता है। जब आप लगातार फ़ोन पर बने रहते हैं और अलग-अलग सोशल मीडिया ऐप्स देखते रहते हैं, तो आप अपने मस्तिष्क को व्यर्थ जानकारी दे रहे होते हैं। इनसे न तो मानसिक विकास होता है, न ही व्यक्तिगत विकास में मदद मिलती है। इससे आपका वायु तत्व असंतुलित हो जाता है और आत्म-विकास से जुड़े आपके विचार धीरे-धीरे पीछे छूट जाते हैं। ये आपकी प्राथमिकताओं में सबसे नीचे चले जाते हैं।
आपके मस्तिष्क में विचारों को समझने और उस पर प्रतिक्रिया देने की एक विशिष्ट लय होती है। एक विचार से दूसरा जुड़ता है, फिर तीसरा और इस तरह आपका मन धीरे-धीरे गहराई में उतरता जाता है। इसे इस तरह समझिए जैसे आप किसी कमरे में हैं, जिसमें एक दरवाज़ा है फिर उसके आगे एक और कमरा है और एक दरवाज़ा। हर दरवाज़े का ताला अलग-अलग तरह का है। कोई तीन सेकंड में खुलता है, तो कोई पंद्रह सेकंड भी ले सकता है। आखिरकार, जब आप उस अंतिम दरवाज़े को पार करते हैं, तो आप ऐसे ख़ज़ाने तक पहुँचते हैं, जहाँ अद्भुत विचारों की चमक होती है।

कुछ लोग उस विचारों के ख़ज़ाने तक पहुँचने में दस मिनट लगाते हैं, जबकि कुछ लोग वहाँ तक पहुँचने की कोशिश भी नहीं करते, क्योंकि उनके विचार लगातार फ़ोन की नोटिफिकेशन या दूसरी बाहरी बातों से भटकते रहते हैं। इस वजह से मस्तिष्क की लय टूट जाती है और ऐसे लोग अपने मन की उस गहराई तक कभी नहीं पहुँच पाते, जहाँ सच्ची समझ और अद्भुत विचार छिपे होते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग हमेशा उलझे रहते हैं और बार-बार कहते हैं कि उन्हें अपनी ज़िन्दगी की दिशा समझ में नहीं आ रही है। वे जो भी निर्णय लेते हैं, वे केवल सतही होते हैं, क्योंकि उनके पास यह जानने की समझ नहीं होती कि वे असल में कर क्या रहे हैं।अगर आप जीवन से व्यर्थ की उलझनों और ध्यान भटकाने वाली चीज़ों को हटा दें और अपने मस्तिष्क को लगातार सकारात्मक विचारों से पोषित करें तो इससे आपकी सोचने की शक्ति लगातार मज़बूत होती रहेगी। यह काम चाहे किसी सार्थक गीत को सुनकर करें या अपने टेबल पर मुस्कुराते हुए बच्चों की कोई सुंदर तस्वीर रखकर। अगर आप टीवी या फ़ोन पर बेमतलब की चीज़ें देखते रहेंगे, तो इससे आपके विचार कमज़ोर होंगे।जब आप अकेले होते हैं और पूरी एकाग्रता से अपने कार्य पर ध्यान देते हैं, तब आपका मस्तिष्क एक लय पकड़ लेता है और उसी लय में वह कुछ ऐसा रच सकता है, जो अपने आप में एक उत्कृष्ट कृति बन जाए, क्योंकि तब विचार मस्तिष्क के गहनतम स्तर से निकलते हैं। हर समस्या का हल आपके भीतर ही छिपा है। ज़रूरत सिर्फ इतनी है कि आप शांत होकर बैठें, उस समस्या पर ध्यान लगाएँ, शांत और स्पष्ट मन से सोचें और फिर निर्णय लें। जीवन में कोई भी निर्णय लेना हो तो उसके लिए सबसे उपयुक्त समय है, सुबह का समय, लगभग 5 बजे। उस वक्त आकाश में मौजूद ऊर्जा आपके साथ होती है।
अगर सुबह की सैर के दौरान या पौधों को पानी देते समय आपको किसी तरह की शारीरिक असहजता महसूस होती है, तो यह आपके शरीर का संकेत है कि आपका ब्रह्मांड की लय के साथ तालमेल में नहीं है। आपके भीतर कोई एक तत्त्व असंतुलित है। हर समस्या की शुरुआत एक साधारण-से विचार से होती है। वही असहजता, जिसे आप किसी से कहना भी नहीं चाहते, धीरे-धीरे दिमाग़ में एक छोटे-से अवरोध (ब्लॉकेज) का रूप ले लेती है। यह असहजता किसी विशेष भावना से जुड़ी होती है। जब आप इस तरह के कई मानसिक अवरोध बनाते रहते हैं, तो इसका असर आपके कर्मों पर भी पड़ता है। आप अपने सर्वोत्तम स्तर पर कार्य नहीं कर पाते, क्योंकि अनजाने में आपने अपने चारों ओर एक मानसिक दीवार खड़ी कर ली होती है।
कल्पना कीजिए, आपको एक परिधान बहुत पसंद आ गया। उसका कपड़ा, रंग और फिटिंग, सब कुछ वैसा ही था जैसा आप चाहते थे, लेकिन जैसे ही किसी ने उस परिधान में कोई कमी बता दी या कह दिया कि इसमें आप जँच नहीं रहे हैं, तो आप अचानक अपने पहनावे को लेकर सजग हो जाएँगे। जबकि उस क्षण तक सब कुछ बिल्कुल ठीक लग रहा था। अब आपके मस्तिष्क ने उस परिधान के साथ एक नकारात्मक बात जोड़ दी है। अगली बार जब आप वही परिधान उठाएँगे, तो आपके भीतर यह संकोच या असहजता उभर आएगी और संभव है कि आप वह उसकी जगह किसी और परिधान को पहनना चुनें।
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अगर आपका मस्तिष्क एक टिप्पणी से इतना प्रभावित हो सकता है, तो ज़रा सोचिए कि अब तक आपने कितने अच्छे विचार और अवसर केवल इसलिए खो दिए होंगे, क्योंकि मस्तिष्क में पहले से ही कितनी नकारात्मक बातें भरी हुई थीं।
इस तरह के मानसिक अवरोधों को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है ज्ञान और स्व-संकल्प (सेल्फ़-अफ़र्मेशन) से जुड़े अभ्यास।
- गहराई से सोचना शुरू करें और फालतू जानकारी से बचें। फ़ोन और टीवी पर कम समय बिताएँ। आज हर कोई अपना मतलब निकालने में लगा है। आपके भले की सोचने वाला कोई नहीं है। इसलिए ऐसा कंटेंट देखें, जो आपका ज्ञान बढ़ाए और आपको आंतरिक प्रसन्नता प्रदान करे। जैसे प्राचीन विज्ञान पर आधारित कार्यक्रम या तथ्यों से भरपूर कोई विज्ञान डॉक्युमेंट्री। यह उन न्यूज़ एँकर को देखने से कहीं अधिक लाभदायक होगा, जो किसी एक विचारधारा का एजेंडा चलाने में लगे रहते हैं। ऐसा ही कुछ नाज़ी जर्मनी में भी हुआ था। अगर आपको लगता है कि आप ऐसे समय में नहीं जी रहे हैं, तो दोनों विश्व-युद्धों पर बनी डॉक्युमेंट्री ध्यान से देखिए और आज की स्थिति से तुलना कीजिए।
- हर दिन कुछ पढ़ें। किसी ऐसी पुस्तक के कम-से-कम बीस पन्ने पढ़ें, जो आपके पेशे से नहीं, बल्कि आपके जीवन से जुड़ी हो, जैसे धर्म, आत्म-विकास, जीवनियाँ, कथा-साहित्य या जादू से जुड़ी कहानियाँ हों, जो मेरी पसंद हैं। जो लोग कुछ नया नहीं सीखते, वे जीवन में जल्दी निराश हो जाते हैं। सीखते रहना मस्तिष्क को सक्रिय रखता है और नए विचार देता है। नए विचार ही आपके आत्म-विश्वास को बढ़ाते हैं।
- प्रार्थना करें। प्रार्थना करना किसी भी प्रश्न का उत्तर माँगने का सबसे प्रभावी तरीका है। जब आप सर्वशक्तिमान से या अपने भीतर बसे किसी अस्तित्व से प्रार्थना करते हैं, तो आप अपने जीवन की समस्याओं को पहचानने लगते हैं और उत्तर भी जानने लगते हैं।
~दीपांशु गिरी.
ख़ुश मन के संस्कार
दीपांशु गिरी
पृष्ठ : 188
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क्यों मरते हैं हम? / डॉ. वेंकी रामकृष्णन
डॉ. वेंकी रामकृष्णन की यह किताब उम्र बढ़ने और मृत्यु के विज्ञान पर एक गहन चर्चा है। इसमें बताया गया है कि DNA, प्रोटीन, और माइटोकॉन्ड्रिया जैसे कोशिकीय बदलाव हमें कैसे बूढ़ा करते हैं। यह कृति अमरता की खोज के मानव इतिहास और धार्मिक अवधारणाओं को भी छूती है। लेखक सवाल करते हैं: क्या मृत्यु जैविक रूप से आवश्यक है, और क्या अमरता वास्तव में मानव के लिए हितकारी होगी?
336 पृष्ठ / पेंगुइन स्वदेश
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आप जो ढूँढ़ रहे हैं वह मिलेगा लाइब्रेरी में / मिचिको आओयामा
टोक्यो की रहस्यमयी लाइब्रेरियन सायूरी कोमाची पाठकों की ज़रूरतों को समझकर उन्हें सही किताबें सुझाती हैं, जिससे वे अपनी आत्म-खोज कर सकें। उपन्यास पाँच दिशाहीन लोगों की कहानियों को जोड़ता है; कोमाची के अनोखे सुझाव और उपहार उन्हें सपने पूरे करने में मदद करते हैं।
पृष्ठ : 276
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