‘अम्बेडकर की शख्सियत पर सभी राजनीतिक दल अपना करीबी होने का दावा करते हैं’ – डॉ. शशि थरूर


राजनयिक व लेखक डॉ. शशि थरूर (साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित) की पुस्तक ‘अम्बेडकर: एक जीवन’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस आयोजन में वक्ताओं के रूप में पुस्तक के लेखक डॉ. शशि थरूर, पुस्तक के अनुवादक, पत्रकार और लेखक अमरेश द्विवेदी, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’, हिन्दी की वरिष्ठ लेखिका एवम सांसद महुआ माजी, दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर अदिति पासवान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से प्रो. अरविन्द कुमार मौजूद रहे।

अम्बेडकर की शख्सियत
पुस्तक ‘अम्बेडकर: एक जीवन’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा.

वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा यह डॉ थरूर की चौथी पुस्तक है। इससे पहले “अंधकार काल”, “मैं हिंदू क्यों हूं” और “अस्मिता का संघर्ष” पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अतिथियों का स्वागत ग्रुप चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने किया।

महात्मा गांधी के बाद, अम्बेडकर ही ऐसे शख्स हैं जिनकी प्रतिमाएँ पूरे देश में फैली हुई हैं

इस अवसर पर डॉ. शशि थरूर ने कहा कि यह कहना आवश्यक है कि संभवतः महात्मा गांधी के बाद, अम्बेडकर ही ऐसे शख्स हैं जिनकी प्रतिमाएँ पूरे देश में फैली हुई हैं। दो टीवी चैनलों के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि महानतम भारतीयों की सूची में अम्बेडकर पहले स्थान पर थे। समकालीन भारत में वे दूसरी सबसे बड़ी शख्सियत हैं। उनके देहांत के बाद भी उनकी शख्सियत बढ़ती ही गई है। आज हर राजनीतिक दल उनके ऊपर अपना दावा करता है। उन्होंने साढ़े सत्रह हज़ार पन्ने लिखे।

थरुर ने आगे कहा कि अम्बेडकर की एक ऐसी शख्सियत है जिनकी मृत्यु के बाद भी पुस्तकें प्रकाशित होती रहीं। मैंने उनके जीवन से जुड़े तथ्यों को इकट्ठा कर इस पुस्तक को लिखा है। मेरी यही कोशिश रही है कि उनके जीवन को आलोचनात्मक तरीके से प्रस्तुत करूँ। अम्बेडकर, अपने परिवार में चौदहवीं संतान थे और अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उन्होंने अपने जीवन के सभी अभावों को पीछे छोड़ते हुए वह सब हासिल किया जो बड़े घरानों के लिए भी मुश्किल होता है। वे लॉ कॉलेज के पहले प्रिंसिपल बने। उन्होंने कई डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं और अर्थशास्त्र एवं राजनीति के क्षेत्र में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं। एक गरीब परिवार में जन्मे होने के बावजूद, उन्होंने विभिन्न विषयों पर किताबें लिखीं, जो उनकी अद्वितीय प्रतिभा का उदाहरण हैं। आरक्षण की व्यवस्था अम्बेडकर की देन है। समय के साथ उनका कद और भी बढ़ता जा रहा है। जिन बातों के लिए उन्होंने हमें सावधान किया था, उनमें से कई समस्याएँ अब विदेशों में भी पहुँच गई हैं। डॉ. अम्बेडकर के विचारों को आत्मसात करना ही उनके सपनों का भारत बनाने का मार्ग है।

'अम्बेडकर की शख्सियत पर सभी राजनीतिक दल अपना करीबी होने का दावा करते हैं' - डॉ. शशि थरूर
‘अम्बेडकर: एक जीवन’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा.

डॉ. भीमराव अम्बेडकर, दिन-ब-दिन बड़े होते जा रहे हैं

अमरेश द्विवेदी ने कहा कि मुझे बहुत खुशी हुई जब मेरे पास यह किताब आई। डॉ. थरूर को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है। मैंने उनकी कई किताबें पढ़ी हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर, दिन-ब-दिन बड़े होते जा रहे हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद मैं खुद को बेहतर स्थिति में पाता हूँ। ओलंपिक मेडल की तुलना में, अम्बेडकर का योगदान भारत के एक वर्ग के लिए वैसा ही है। उन्होंने आज़ादी से पहले खूब पढ़ाई की और ब्रिटिश प्रधानमंत्री के सामने बराबरी के अधिकारों की माँग की।

अम्बेडकर के जीवन के आरंभिक भेदभावों का वर्णन

महुआ माजी का कहना था कि उन्हें किताबें पढ़ना अच्छा लगता है, लेकिन इतने बड़े लेखक पर बोलना चुनौतीपूर्ण है। बाबा साहब का नाम ऐसा है जिसे सभी जानते हैं। स्कूलों में, सभी जगह पर उनके बारे में लिखा जाता है। लेकिन फिर भी लेखक ने इस विषय पर क्यों लिखा? लेखक ने अम्बेडकर के जीवन को पुस्तक के माध्यम से पुनर्जीवित किया है। संदर्भों की सूची से यह स्पष्ट होता है कि शशि थरूर ने अम्बेडकर को जस का तस नहीं लिखा है, बल्कि अपने विचार भी रखे हैं। अम्बेडकर के प्रति बिना आलोचना के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। 1891 में उनका जन्म हुआ था। इस पुस्तक को पढ़ते हुए आपको लगेगा कि आज के दलित और पिछड़े वर्ग की बात की जा रही है। अम्बेडकर का संघर्ष गांधी के विचारों से तुलना करते हुए दिखाया गया है। शशि थरूर की पुस्तक को पढ़कर यह लगता है कि वह मूल रूप से लेखक हैं। उनकी भाषा सरल, संप्रेषणीय है। अम्बेडकर के जीवन के आरंभिक भेदभावों का वर्णन किया गया है और कुछ उदार उदाहरण भी दिए गए हैं। लेखक की महानता उनके क्षमा मांगने की क्षमता में दिखाई देती है। पुस्तक जातिगत गणना और इस पर हो रही बातचीत को भी दर्शाती है। यह पुस्तक अनिवार्य है यदि आप अम्बेडकर को समझना चाहते हैं।

प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन sheoraj singh bechain at vani books delhi
प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन.

यह एक दुर्लभ पुस्तक है

प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन ने बताया कि यह पुस्तक जब उनके सामने आई तो उन्होंने इसे शुरुआत से अंत तक पढ़ा। यह पुस्तक इतनी प्रभावी है कि इसे छोड़ना संभव नहीं था। यह एक दुर्लभ पुस्तक है।

उन्होंने आगे कहा कि मैं अम्बेडकर का विद्यार्थी हूँ। पत्रकारिता में भी अम्बेडकर का प्रभाव है। यह पुस्तक कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालती है और नये दृष्टिकोण से विश्लेषण करती है। अम्बेडकर की विविधता और उनके कार्यों की महत्ता धीरे-धीरे सामने आ रही है। भारत रत्न मिलने से पहले अम्बेडकर को कोई प्रकाशक छापने को तैयार नहीं था। अम्बेडकर की सोच का विस्तार और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं। पुस्तक अम्बेडकर के जीवन के अनकहे पहलुओं को उजागर करती है और उनके संघर्षों को नए संदर्भों में प्रस्तुत करती है।

पढ़ें : प्रवासी साहित्य की प्रेरणा और सृजन, पद्मेश गुप्त के साथ एक शाम

अगर अम्बेडकर को समझना है तो यह पुस्तक पढ़नी ही चाहिए

डॉ. अदिति पासवान ने अपने विचार रखते हुए कहा कि मेरे लिए यह एक फैन मूमेंट है। अम्बेडकर को लोग 14 अप्रैल और पुण्यतिथि पर याद करते हैं, उसके बाद नहीं। यह पुस्तक हर व्यक्ति के लिए अम्बेडकर को समझने में मददगार है। क्योंकि अगर अम्बेडकर को समझना है तो यह पुस्तक पढ़नी ही चाहिए। आज अछूतपन के नए-नए आयाम सामने आ रहे हैं। संविधान एक बुनियादी पाठ्यपुस्तक है जो सशक्तिकरण का टूल है। अम्बेडकर पहले सच्चे नारीवादी थे। अम्बेडकर सबके लिए हैं। पुस्तक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और अम्बेडकर को समझने के लिए बहुत जरूरी है।

नेहरू और अम्बेडकर दो सबसे प्रभावशाली शख्सियतें हैं

प्रो. अरविन्द कुमार ने कहा कि पुस्तक को पढ़ते हुए, यह स्पष्ट हो जाता है कि नेहरू और अम्बेडकर दो सबसे प्रभावशाली शख्सियतें हैं। अम्बेडकर की असाधारण जीवन यात्रा समाज के दलितों में उम्मीद जगाती है। अम्बेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए हम हर दिन एक कदम आगे बढ़ रहे हैं। डॉ. थरूर ने अम्बेडकर की जीवनी को सही तरीके से प्रस्तुत किया है।