अंबुजा की कहानी : संकल्प, साहस और सफलता की गाथा


‘अंबुजा की कहानी’ सिर्फ एक कंपनी की नहीं बल्कि भारतीय उद्यमिता के उस अदम्य साहस की गाथा है, जिसने तमाम चुनौतियों के बावजूद असंभव को संभव कर दिखाया। यह संस्मरण नरोत्तम सेखसरिया की यात्रा पर केंद्रित है जिन्होंने कपास के कारोबार को छोड़कर 1983 में सीमेंट जैसे बिल्कुल अनजाने और जोखिम भरे क्षेत्र में कदम रखा।

अंबुजा की कहानी / नरोत्तम सेखसरिया
अंबुजा की कहानी / नरोत्तम सेखसरिया

नरोत्तम सेखसरिया की पुस्तक ‘अंबुजा की कहानी’ ‘The Ambuja Story : How a Group of Ordinary Men Created an Extraordinary Company’ का हिंदी अनुवाद है। किताब को हार्पर हिन्दी ने प्रकाशित किया है। अनुवाद मिहीर नीलम जाजोदिया का है।

अंबुजा की कहानी : कपास से सीमेंट तक

कहानी शुरू होती है 1983 के भारत में, जब नरोत्तम सेखसरिया ने अपने स्थापित कपास व्यापार को छोड़कर, सीमेंट जैसे बिलकुल अपरिचित और अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्र में कदम रखा। उस दौर में, भारतीय अर्थव्यवस्था पर ‘लाइसेंस राज’ का गहरा साया था। किसी भी नए उद्योग को स्थापित करने का मतलब था, सरकारी दफ्तरों के जटिल मकड़जाल, परमिटों की अंतहीन प्रतीक्षा और लालफीताशाही की ऊँची दीवारें। ऐसे माहौल में एक सीमेंट फैक्ट्री की नींव रखना किसी जुए से कम नहीं था, जिसके लिए न केवल बड़ी पूँजी, बल्कि उससे भी कहीं ज़्यादा बड़ा कलेजा चाहिए था।

उस दौर में जब देश में ‘लाइसेंस राज’ का बोलबाला था और किसी भी नए उद्योग को खड़ा करना सरकारी इजाज़तों के मकड़जाल से कम नहीं था, तब सीमेंट फैक्ट्री शुरू करने का फैसला किसी जुए से कम नहीं था। लेकिन सेखसरिया ने यह साबित किया कि व्यापार में क्षणिक लाभ के बजाय ईमानदारी, एक मजबूत नैतिक आधार और दूर की सोच ही सबसे बड़ी स्थायी पूंजी होती है। यह किताब मैनेजमेंट के छात्रों और हर उस व्यक्ति के लिए एक जरुरी किताब बन जाती है जो मानता है कि उच्च नैतिकता के साथ बड़ी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। अंबुजा की कहानी इस रूढ़िवादी धारणा को ध्वस्त करती है कि सिद्धांत-आधारित उद्यमशीलता दीर्घकालिक और वास्तविक सफलता की कुंजी नहीं है। यह शुरुआती जोखिम और सिद्धांतों पर अटूट विश्वास ही ‘अंबुजा’ की सफलता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ बना।

नरोत्तम सेखसरिया की पुस्तक 'अंबुजा की कहानी' 'The Ambuja Story : How a Group of Ordinary Men Created an Extraordinary Company' का हिंदी अनुवाद है
नरोत्तम सेखसरिया की पुस्तक ‘अंबुजा की कहानी’ ‘The Ambuja Story : How a Group of Ordinary Men Created an Extraordinary Company’ का हिंदी अनुवाद है.

औद्योगिक मिथकों का टूटना

अंबुजा सीमेंट ने भारतीय उद्योग जगत के कई स्थापित मिथकों को चुनौती दी और उन्हें तोड़ा। परंपरागत रूप से, सीमेंट को एक ‘नीरस कमोडिटी’ माना जाता था, जिसका विपणन मुश्किल होता है और जिसमें नवाचार की गुंजाइश कम होती है। इस विचार को खंडित करते हुए, अंबुजा ने खुद को केवल सीमेंट बनाने वाली कंपनी के रूप में नहीं, बल्कि ‘समुद्र के पानी से बनी सीमेंट’ और ‘शक्ति के प्रतीक’ के रूप में स्थापित किया।

अंबुजा की कहानी / हार्पर हिन्दी
यह पुस्तक सिर्फ एक बिजनेस बुक नहीं है, यह सफलता, नैतिकता और जीवन के सिद्धांतों पर एक गहन विश्लेषण है। यह हर युवा उद्यमी के लिए एक प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक पठन है, जो भारतीय उद्यमशीलता की असली ताकत को समझना चाहता है।
सबसे महत्वपूर्ण रूप से अंबुजा ने सिद्ध किया कि भारी उद्योग और पर्यावरण-संरक्षण एक साथ चल सकते हैं। कंपनी ने उच्च गुणवत्ता को बनाए रखते हुए भी अपने उत्पादों को किफायती रखा, यह दिखाते हुए कि पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी उठाना कोई महंगा बोझ नहीं, बल्कि एक स्मार्ट और टिकाऊ व्यापार मॉडल का हिस्सा है। किताब उन इंजीनियरिंग और लॉजिस्टिक नवाचारों का विस्तृत विवरण देती है जिन्होंने कंपनी को कम लागत पर उच्च दक्षता हासिल करने में मदद की। यह खंड उन व्यवसायों के लिए एक सबक है जो लाभ को पर्यावरण और गुणवत्ता से ऊपर रखते हैं।

सीएसआर की दूरदर्शी मिसाल

पुस्तक का सबसे प्रेरणादायक पहलू अंबुजा का कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के प्रति उसका दूरदर्शी रवैया है। भारत में सीएसआर को कानूनी रूप से अनिवार्य किए जाने से बहुत पहले ही, अंबुजा ने इसे अपने व्यवसाय की आत्मा बना लिया था। सेखसरिया का विज़न केवल वित्तीय मुनाफ़ा कमाना नहीं था, बल्कि अपने प्लांट्स के आस-पास के समुदायों के जीवन में वास्तविक और सकारात्मक बदलाव लाना था।

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अंबुजा ने महिला सशक्तिकरण, कौशल विकास, स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रावधान और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश किया। उनका मानना था कि एक स्थायी व्यापार केवल एक स्वस्थ और सशक्त समुदाय में ही फल-फूल सकता है। कंपनी ने सामुदायिक भागीदारी के ज़रिए जल संरक्षण और वैकल्पिक रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे पूरे उद्योग के लिए सामाजिक जिम्मेदारी का एक उच्च मापदंड स्थापित हुआ। ‘अंबुजा की कहानी’ इस निष्कर्ष को दृढ़ता से स्थापित करती है कि सामाजिक निवेश किसी भी स्थायी व्यापारिक सफलता के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना कि वित्तीय लाभ। यह हमें याद दिलाती है कि एक सफल व्यापार वह है जो अपने समाज के साथ बढ़ता है।

‘अंबुजा की कहानी’ एक व्यापारिक संस्मरण से कहीं अधिक है; यह भारतीय उद्यमिता के एक ऐसे दौर का दस्तावेज़ीकरण है जब नैतिकता, जोखिम और नवाचार ने असंभव को संभव बनाया। यह किताब उन सभी युवा पेशेवरों, उद्यमियों और खासकर प्रबंधन के छात्रों के लिए एक जरुरी किताब बन जाती है जो व्यवसाय के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का सपना देखते हैं। यह नरोत्तम सेखसरिया के सफर को एक जीवित प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करती है कि व्यापार में ईमानदारी और दूर की सोच ही अंततः सबसे शक्तिशाली प्रतिस्पर्धी लाभ होती है।

अंबुजा की कहानी
नरोत्तम सेखसरिया
पृष्ठ : 368
हार्पर हिन्दी
किताब का लिंक : https://amzn.to/3WrhB6J