अनामिका अनु का कथा-संग्रह ‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ समकालीन हिंदी साहित्य में कवि की गहरी और संयमी दृष्टि प्रस्तुत करता है। यह संग्रह मानवीय अनुभवों, विशेषकर स्त्रियों के मौन संवादों, प्रेम, विरह और आत्म-साक्षात्कार का भाव-नाट्य है। उनकी कहानियाँ रिश्तों की कसक, सामाजिक यथार्थ और आत्मिक द्वंद्व को काव्यमय भाषा और प्रतीकात्मक शिल्प से अभिव्यक्त करती हैं। ‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ संग्रह स्त्री-चेतना, भावनात्मक गहराई और जीवन के सूक्ष्म भावों का सशक्त दस्तावेज़ है, जो कहानी और कविता के बीच एक नया सेतु बनाता है। पुस्तक को मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित किया है। अनामिका अनु की पुस्तक पर डॉ. सुषमा देवी की समीक्षा पढ़िए…

‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ की समीक्षा
अनामिका अनु का पहला कथा-संग्रह “येनपक कथा और अन्य कहानियाँ” समकालीन हिंदी कथा-साहित्य में एक सशक्त और सधे स्वर के रूप में प्राप्त हुआ है। अब तक वे अपनी कविताओं, अनुवादों और वैचारिक लेखन के कारण साहित्य संसार में पहचान प्राप्त करती रही हैं, परंतु यह संग्रह सिद्ध करता है कि उनके भीतर का कथाकार उतना ही गहरा, संयमी और कल्पनाशील है जितना कि उनका कवयित्री मन।
कहानी उनके लिए केवल घटनाओं का बयान नहीं, बल्कि मानवीय अनुभवों की वह बुनावट है जहाँ भाषा, स्मृति, समय और अस्तित्व आपस में घुल-मिल जाते हैं। इस संग्रह की कहानियाँ पढ़ते हुए लगता है- यह संसार स्त्रियों के भीतर चल रहे मौन संवादों, उनके प्रेम, प्रतीक्षा, विरह और आत्म-साक्षात्कार का भाव-नाट्य है। लेखिका अनामिका अनु की कहानियों के इस संग्रह में मानव जीवन की संवेदनाओं, रिश्तों, सामाजिक यथार्थ और आत्मिक द्वंद्व को बड़ी गहराई से अभिव्यक्त किया गया है।
इस संग्रह को दो भागों में विभाजित करते हुए विवेचित किया जा सकता है- संग्रह के पहले भाग की कहानियों में जीवन के विविध रंग दिखाई देते हैं -बचपन की यादें, स्त्री की मनःस्थितियाँ, रिश्तों की कसक, और समय के थपेड़े से टूटते संबंध। “बूढ़ा छाते वाला” संवेदना और अकेलेपन की कथा है। “काली कमीज़ काला कुर्ता” पहचान और व्यक्तित्व की खोज का प्रतीक है। “मछली का स्वाद” जीवन के सामान्य से प्रसंग में असामान्यता खोजती है। “चारों सम्त आठों पहर छोड़ जाऊँगा” त्याग और आस्था की गहराई दिखाती है। इस कहानी में लेखिका ने काम की निर्लिप्त विवेचना पात्रों के माध्यम से की है| ‘‘देवसेना एक विदुषी हैं जिनकी कलम से प्रार्थना और क्षमा अनवरत बहती रही। युवावस्था में शयनकक्ष की वीरानी को किताबों से खापतीं| देह की कामनाओं को सिसकियों में बहातीं| देवसेना ऐसी तपस्विनी थीं जो भिक्षुणी नहीं बनीं।….युवावस्था में वृद्ध जब भी घर आता, देह को कंठ तक पीकर आता।’’(पृष्ठ-37)

“ग्रीन वीलो” आधुनिकता और मानव चेतना को साथ लाती है। सूरज से प्रेम में धोखा खाकर भी नायिका ‘‘मालविका का वह पहला और अंतिम, जैसा-तैसा, अधूरा सा प्रेम अब उसकी कोशिकाद्रव्य का हिस्सा बन चुका है, उसमें जरा सा हिलोर आते ही वह बिखरकर फ़ैल जाती है, कोशिका दर कोशिका।’’(पृष्ठ-50)
“स्वीटी की अम्मा”, “अम्फान, अमलतास और आत्मा”, “फेसबुक और पाप” जैसी कहानियाँ सामाजिक यथार्थ और स्त्री-अस्मिता से जुड़ी हैं। “मृत पिता की चिट्ठी” भावनात्मक संवाद की मिसाल है, जहाँ मृत पिता भी शब्दों के माध्यम से जीवित हो उठते हैं। “आमौर और चमौली”, “तर्क” और “चितकबरी” मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्तर पर विविध जीवन स्थितियों की पड़ताल करती हैं।
‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ संग्रह के दूसरे भाग में जीवन के यथार्थ के साथ आत्मचिंतन और स्त्री-स्वतंत्रता की आवाज़ अधिक मुखर है। “एक चित्रकार की वापसी” रचनात्मक व्यक्ति के संघर्ष को दिखाती है। “वह पागल नहीं थी” समाज की मानसिकता पर प्रश्न उठाती है। “हवाई चप्पल” साधारण जीवन की असाधारण संवेदना को छूती है। “भीगे तकिए धूप में” प्रतीकात्मक रूप से दर्द और उम्मीद का मेल है। “थोड़ा-सा सुख” छोटे-छोटे पलों में जीवन का अर्थ खोजती है। “दृगा लिखती है” लेखिका के आत्मानुभव और सृजन की गंध से भरी एक आत्ममंथनात्मक कहानी है।
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समस्त संग्रह में अनामिका अनु की लेखन शैली सहज, संवेदनशील और आत्मानुभवों से समृद्ध है। वे अपने पात्रों को समाज, परिवार और रिश्तों की वास्तविक परिस्थितियों में रखकर जीवन की जटिलताओं को सरल भाषा में प्रस्तुत करती हैं। हर कहानी अधूरी होते हुए भी पाठक के मन में एक गूँज छोड़ जाती है, जैसे जीवन स्वयं अधूरा, पर अर्थपूर्ण होता है। संक्षेप में, यह संग्रह आधुनिक स्त्री-चेतना, मानवीय रिश्तों की गहराई और जीवन के सूक्ष्म भावों का सशक्त दस्तावेज़ है। संग्रह की आरंभिक कहानी ‘येनपक कथा : बूढ़ा छातेवाला’ शीर्षक कहानी है, जो पूरे संग्रह का सौंदर्यबोध तय करती है। यह एक ऐसी लोक-गाथा है जिसमें यथार्थ और जादू का, स्मृति और प्रतीक का अनोखा संगम है। बूढ़ा छातेवाला एक रहस्यमयी किंतु करुण पात्र है- जो स्त्रियों को रंग-बिरंगे छाते और खिलौने बेचता है, पर असल में उन्हें सपनों और आकांक्षाओं का आश्रय देता है। जब एक नया छातेवाला आता है, सबका मोह उसी की ओर मुड़ जाता है, पर पुराने बूढ़े के जाने के बाद गाँव की स्त्रियाँ समझती हैं कि जिसे वे भूल गईं, वही उनका अनकहा प्रेम और सुरक्षा था। कहानी का अंत-
“बूढ़ा छातेवाला झील हो गया, उसकी देह झील का पानी…”(पृष्ठ-7)- इतना काव्यात्मक और प्रतीकात्मक है कि यह केवल कहानी नहीं, बल्कि जीवन और स्मृति के पुनर्जन्म की एक कविता प्रतीत होने लगती है।

‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ की दूसरी कहानी ‘काली कमीज़ काला कुर्ता’ आधुनिक समय के प्रेम और वियोग की कहानी है, जहाँ रेचल और बेंजामिन अपने-अपने संसार में रहते हुए भी एक-दूसरे की उपस्थिति से मुक्त नहीं हो पाते। वे संवाद नहीं करते, पर उनकी स्मृतियाँ, उनकी वस्तुएँ (कमीज़ और कुर्ता) उनकी आत्मा का विस्तार बन जाती हैं। यह प्रेम की वह कसक है, जो कहे बिना भी सब कुछ कह जाती है। “हमारा डर, हमारी शंका कितने दुखों को निमंत्रण देती है मगर चाहकर भी प्रेम की विदाई नहीं कर पाती।”(पृष्ठ-16) -यह वाक्य प्रेम को एक दार्शनिक और मानवीय गहराई देता है। यह कहानी समकालीन शहरी जीवन के मौन, असुरक्षा और भावनात्मक द्वंद्व को अत्यंत सूक्ष्मता से पकड़ती है। रेचल और बेंजामिन आज के उस युगल का प्रतीक हैं जो प्रेम से बचना चाहते हैं, पर बच नहीं पाते हैं।
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तीसरी कहानी ‘मछली का स्वाद’ स्त्री-जीवन की सबसे मार्मिक कहानियों में से एक है। रेवती की गरीबी, उसकी गर्भावस्था और ‘मछली’ खाने की छोटी-सी इच्छा दरअसल अस्मिता और स्नेह की भूख का रूपक बन जाती है। जब उसके माता-पिता आर्थिक कारणों से उसे मछली नहीं खिलाते, तो यह केवल एक भोजन का अभाव नहीं, बल्कि संबंधों की भावनात्मक दरार का प्रतीक बन जाता है। कहानी के अंत में रेवती के भीतर यह अनुभूति कि “वह खुद मछली हो गई है- राख में लपेटी, पककर समाप्त…” हृदय को झकझोर देती है। यह कहानी भारतीय मध्यवर्गीय स्त्री के भीतर के संतोष और अभाव के द्वंद्व की सशक्त अभिव्यक्ति है।
अनामिका अनु की कहानियाँ विषयों की दृष्टि से अत्यंत विविध हैं। इनमें प्रेम, वियोग, स्मृति, स्त्री-अस्मिता, अकेलापन, समाज की संवेदनहीनता आदि सभी स्वर मुखर हैं। वे स्त्री को केवल पीड़िता के रूप में नहीं, बल्कि संवेदना, आत्मबल और जिजीविषा के केंद्र में रखती हैं। उनकी कहानियाँ प्रायः एकांत में जीने वाली स्त्रियों के भीतर की बेचैनी, उनकी चाह और संघर्ष की गाथाएँ हैं। ‘ग्रीन विलो’ में टूटी हुई मालविका अपने बिखरे जीवन को नए अर्थ में गढ़ती है।
‘मृत पिता की चिट्ठी’, ‘फेसबुक और पाप’, ‘थोड़ा-सा सुख’ जैसी कहानियाँ सामाजिक यथार्थ, आधुनिक तकनीक और भावनात्मक एकाकीपन के बीच स्त्री की आवाज़ को स्वर देती हैं। कहानी की गति कहीं भी जल्दबाज़ी नहीं दिखाती, बल्कि वे धीरे-धीरे अपने पात्रों के भीतर उतरती हैं, जैसे किसी नदी में उतर रही हों। उनकी कहानियाँ पाठक को केवल बाहर से नहीं, भीतर से छूती हैं।
अनामिका अनु की भाषा कवितामय और प्रतीक अति सघन हैं। वे गद्य के माध्यम से कविता रचती हैं-एक तरह का काव्यमय कथा। वाक्यों में लय है, छवियाँ हैं, और उनमें बार-बार प्रकृति और स्त्री का एकात्म बोध झलकता है। जैसे- बूढ़ा छातेवाला झील बन जाता है, रेवती मछली, और प्रेमी का कुर्ता स्मृति की गंध, ये सब वास्तविकता से परे एक आंतरिक सत्य को व्यक्त करते हैं। उनकी भाषा कहीं भी वाचाल नहीं होती; वरन वे संकेतों में, प्रतीकों में और मौन में व्यक्त होती हैं।

कई बार तो उनके कथानक के अंश सूक्ति की तरह झिलमिलाते हैं- “कंगला का अर्थ सूखी ज़मीन क्यों है, इसका अर्थ हरी माटी भी तो हो सकता था न….’’(पृष्ठ-51)
“आदमी माचिस की तीली होता है। देह का उत्तरी ध्रुव चार ज्ञानेंद्रियों और मस्तिष्क का क्रीड़ास्थल और सारी आग वहीं से पैदा होती है, पूरा शरीर तो उस आग में जलने की नियति के साथ जन्म लेता है।’’ (पृष्ठ-66) – यह शिल्प उनकी कवयित्री-संवेदना का परिणाम है। इसलिए उनकी कहानियाँ परंपरागत कथा-संरचना से हटकर एक लिरिकल अनुभव देती हैं।
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अनामिका अनु की कहानियाँ स्त्री के बाहरी संघर्ष से अधिक उसके भीतर के आत्म-संघर्ष को प्रकट करती हैं। वे किसी विचारधारा की कठोर सीमाओं में नहीं, बल्कि संवेदना की उदार भूमि पर दृढ़तापूर्वक स्थित हैं।
उनकी नायिकाएँ- रेचल, मालविका, रेवती आदि किसी क्रांति की घोषणाएँ नहीं करतीं; वे अपने मौन, अपने अकेलेपन और स्मृतियों के माध्यम से प्रतिरोध करती हैं। उनकी चेतना स्त्री-विमर्श की नारेबाज़ी से दूर, एक आंतरिक नारीवादी दृष्टि को सामने लाती है। वे बताती हैं कि प्रेम, स्मृति और संवेदना भी स्त्री के लिए प्रतिरोध के हथियार हो सकते हैं। उनकी स्त्री पात्र अपने दर्द को गरिमा में बदलना जानती हैं, यही दृष्टि उन्हें असाधारण बनाता है।
‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ संग्रह में कुल अठारह कहानियाँ हैं, और प्रत्येक कहानी में एक विषयगत अनुशासन और भावात्मक केंद्र है। कहीं भी अनावश्यक विस्तार नहीं, बल्कि वे गागर में सागर सी प्रतीत होती हैं।
लेखिका जीवन की छोटी घटनाओं में बड़े भावार्थ खोज लेती हैं। उनकी कहानियों में चेतना की धारा तकनीक और आतंरिक एकालाप का सुंदर प्रयोग हुआ है। संवाद कम हैं, पर मौन की भाषा गहरी है। कहानी का शिल्प दृश्यात्मक भी है, जैसे- “मछली का स्वाद” पढ़ते हुए हमें लगता है कि दृश्य आँखों के सामने जीवंत है।
इन कहानियों में केवल सामाजिक या भावनात्मक स्तर ही नहीं, एक गहरा दार्शनिक विमर्श भी है। अनामिका अनु प्रेम, समय और स्मृति को अस्तित्व के प्रश्नों के रूप में देखती हैं।उनकी कहानियाँ यह प्रश्न बार-बार उठाती हैं- ‘क्या प्रेम स्थायी होता है?’, ‘क्या स्मृतियाँ मिट सकती हैं?’, ‘क्या अस्थायी अनुभवों में भी अनश्वरता होती है?
इस प्रश्नवाचकता में ही उनके कथा-संसार की शक्ति निहित है। वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचतीं, बल्कि संवेदना को अनुभव का शाश्वत बिंदु बना देती हैं। हिंदी साहित्य संसार में कविता से कथा में प्रवेश करने वाले लेखकों की एक लंबी परंपरा रही है- जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय, विनोद कुमार शुक्ल, रघुवीर सहाय, अशोक वाजपेयी आदि-आदि। अनामिका अनु इसी परंपरा की नई और स्त्री-संवेदनशीलता की मजबूत कड़ी हैं। उनकी कहानियाँ कविता और कथा, लोक और आधुनिकता, स्त्री और समाज, सभी के बीच एक नया सेतु बनाती हैं।
अशोक वाजपेयी ने सही लिखा है- “अनामिका अनु इस परंपरा में सार्थक ढंग से शामिल हो रही हैं। इस बढ़त का स्वागत है।”(इसी संग्रह से)
“येनपक कथा और अन्य कहानियाँ” एक ऐसा संग्रह है जो हिंदी कहानी को एक नया रूप और नया संवेदन-क्षेत्र देता है। यह न केवल विषयों की दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि अपनी भाषा और शिल्प के कारण साहित्यिक परिष्कार का उदाहरण भी है। अनामिका अनु की कहानियाँ पढ़ने के बाद पाठक केवल कहानी नहीं पढ़ता, बल्कि जीवन के अनकहे को अनुभूत भी करता है। यह संग्रह स्त्री के मौन, उसके प्रेम, उसके अवसाद और उसके साहस आदि सबको एक कवितामय साक्ष्य की तरह दर्ज करते हुए आगे बढ़ता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अनामिका अनु ने इस पुस्तक से समकालीन हिंदी कहानी को एक नई काव्यात्मक भाषा दी है, जहाँ कहानी का अंत नहीं होता, बल्कि वह भीतर गूँजती रहती है, जैसे झील में देर तक लहरें…
यह संग्रह हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है, जहाँ कहानी और कविता, यथार्थ और जादू, प्रेम और विरह- सब एक साथ स्पंदित होते हैं।
~डॉ. सुषमा देवी
सह-प्राध्यापक, हिंदी विभाग
बदरुका कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड आर्ट्स, हैदराबाद
येनपक कथा और अन्य कहानियाँ
अनामिका अनु
पृष्ठ : 208
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