‘दादाजी की कहानियों का पिटारा’ : सुधा मूर्ति की कहानियाँ पीढ़ियों को जोड़ती हैं


सुधा मूर्ति की किताब ‘दादाजी की कहानियों का पिटारा’ सचमुच जादुई है। यह सिर्फ कहानियों का संग्रह नहीं बल्कि वह खिड़की है जिससे झाँककर हम अपने बचपन के सुनहरे दिनों में पहुँच जाते हैं। किताब को पढ़ते ही लगता है जैसे आपके सामने एक पिटारा खुला हो जिसमें हँसी, मासूमियत और कल्पना की उड़ानें हों। यह किताब सुधा मूर्ति की अंग्रेजी में लिखी किताब ‘Grandma’s Bag of Stories’ का हिंदी अनुवाद है।

दादाजी की कहानियों का पिटारा
दादाजी की कहानियों का पिटारा / सुधा मूर्ति

कहानी की शुरुआत होती है उत्तराखंड की वादियों से। मायावती नामक पहाड़ी इलाके में चारों तरफ बर्फ से ढकी चोटियाँ, देवदार के पेड़ों की खुशबू और ठंडी हवा का संगीत – यह पृष्ठभूमि किताब को और भी जीवंत बना देती है। इसी सुंदर जगह पर चार बच्चे – अनुष्का, कृष्णा, मीनू और रघु – अपनी छुट्टियाँ बिताने आते हैं। उनके साथ हैं अज्जा (दादाजी) और अज्जी (दादीजी), जो इन छुट्टियों को खास बना देते हैं।

अज्जा के पास है कहानियों का अनमोल खज़ाना। बच्चे जैसे ही उनके पास बैठते हैं, मानो कोई जादुई दरवाज़ा खुल जाता है। एक पल वे राजा-रानी की दुनिया में पहुँच जाते हैं तो दूसरे ही पल उड़ती हुई जलपरियों के संग आसमान में। अज्जा की कहानियों में आनंद ही नहीं, सीख भी है। कभी वे करेले जैसी साधारण सब्ज़ी को दिलचस्प बना देते हैं तो कभी बहादुरी और दयालुता का सबक सिखा जाते हैं।

दादाजी की कहानियों का पिटारा / सुधा मूर्ति
सुधा मूर्ति की कहानियाँ पीढ़ियों को जोड़ती हैं

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सुधा मूर्ति की सबसे बड़ी खूबी है उनकी सरल भाषा। वे इतने सहज ढंग से लिखती हैं कि पढ़ते समय लगता है जैसे हम खुद पहाड़ों की ठंडी हवा महसूस कर रहे हों, देवदार की खुशबू साँसों में भर रही हो और दादाजी की आवाज़ कानों में गूँज रही हो। कहानियां अधिक बड़ी नहीं हैं, लेकिन उसका असर गहरा है। पढ़ने के बाद दिल को सुकून और चेहरे पर मुस्कान अपने-आप आ जाती है।

यह किताब बच्चों और बड़ों, दोनों को बाँध लेती है। जब पूरा परिवार साथ बैठकर इसे पढ़ता है, तो माहौल और भी खुशनुमा हो जाता है। बच्चे कहानियों की दुनिया में खोकर खिलखिलाते हैं, और बड़े लोग अपने बचपन की यादों को जी उठते हैं। यही इस किताब का सबसे प्यारा पहलू है – यह पीढ़ियों को जोड़ती है।

दादाजी की कहानियों का पिटारा / सुधा मूर्ति
दादाजी की कहानियों का पिटारा / सुधा मूर्ति

पुस्तक में पहला अध्याय ‘जाड़े की शुरुआत’ है जिसमें कर्नाटक के शिगगांव में रहनेवाले अज्जा और अज्जी उत्तराखंड के एक खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र मायावती जाने की योजना बना रहे हैं। अपने नाती-पोतों के साथ उनका यह सफर बेहद रोमांचक बनने वाला है। दूसरे अध्याय में अज्जा जब दिल्ली एयरपोर्ट पर बच्चों के साथ बैठे हैं और पंतनगर की प्लाइट लेट हो जाती है, तो वे उन्हें ‘माली और तरबूज’ की कहानी सुनाते हैं। तीसरे अध्याय में ‘करेला’ नामक कहानी भी बेहद रोचक है। इसी तरह पुस्तक में अनेक कहानियाँ हैं, जैसे -‘चाँद और खरगोश’, ‘देवदारु’, ‘राज ज्योतिषी’, ‘बुद्धिमान राजकुमार’ आदि।

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अगर किसी को यह लगता है कि नैतिक कहानियाँ पुरानी हो गईं तो सुधा मूर्ति उन्हें नए ढंग से पेश करके ताज़गी भर देती हैं। उनके पात्रों की मासूमियत और घटनाओं की सादगी पाठक को बाँध लेती है। किताब पढ़ते-पढ़ते अहसास होता है कि असली खुशी बड़े कामों में नहीं बल्कि छोटी-छोटी बातों और रिश्तों में छिपी होती है।

‘दादाजी की कहानियों का पिटारा’ हमें यह याद दिलाती है कि कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं होतीं, बल्कि वे जीवन की सच्चाइयों को सरल शब्दों में सिखाने का सबसे सुंदर तरीका हैं। यह किताब हर दिल में जगह बना लेती है और पढ़ने के बाद मन करता है कि काश, हम भी दादाजी-दादीजी के पास बैठकर उनकी कहानियाँ सुन सकें।

यह किताब सिर्फ पढ़ी नहीं जाती, जी जाती है। यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है।

दादाजी की कहानियों का पिटारा
सुधा मूर्ति
216 पृष्ठ
प्रभात प्रकाशन
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